संताल आदिवासियों की अम्बावती परंपरा धरती की उर्वरता के लिए क्यों है महत्वपूर्ण?

इस साल वर्ष 2025 में 22 जून से संताल आदिवासियों की अम्बावती परंपरा शुरू हुई है। इस परंपरा का पालन सदियों से संतालों में किया जाता है और इस दौरान न किसान हल चलाते हैं और न धरती पर किसी अन्य प्रकार का कार्य करते हैं। धरती हमारी माता है जो हमारा भरण-पोषण करती है, हम सब उसकी संतान हैं। यानी धरती एक स्त्री भी है। अम्बावती धरती के इसी स्त्रीत्व से जुड़ा हुआ है।

अम्बावती के दौरान धरती माता ऋतुमती (रजस्वला) होती है। यह धरती के लिए एक शारीरिक प्रक्रिया की तरह है, जैसे स्त्रियों के लिए मासिक धर्म होता है। इसलिए इस दौरान तीन दिन तक किसान खेतों में हल नहीं चलाते हैं और किसी तरह का कृषि कार्य नहीं होता। स्त्रियों में यह प्रक्रिया हर महीने होती है और धरती में वर्ष में एक बार।

इस दौरान संतालों में बेटी और जमाई को भी अपने घर बुलाने की परंपरा है, ताकि वे इस दौरान अलग रहें। इस दौरान ऋतु फल जैसे आम व कटहल आदि पकते हैं तो उन्हें बुलाने का उद्देश्य यह भी होता है कि वे इसका आनंद लें।

अम्बावती के बाद धरती माता की उर्वरता व उत्पादकता बढ़ जाती है। जैसे एक स्त्री के साथ होता है। यह प्रकृति ने बनाया है और हम उसका पालन करते हैं। अम्बावती सात आषाढ़ यानी आषाढ़ के सातवें दिन शुरू होता है और दसवें आषाढ़ तक इसका पालन किया जाता है।

तार्किक आधार पर यह माना जाता है कि अम्बावती के बाद धरती की उर्वरता बढ जाती है और उपज अच्छी होती है। फोटो का प्रयोग प्रतीकात्मक उद्देश्य से।

अम्बावती का संताल जाति में बहुत सम्मान है। इस परंपरा में वैज्ञानिकता है। अम्बावती के बाद सूर्य दक्षिणायन होता है, जैसे मकरसंक्राति के बाद उत्तरायण होता है। यानी अम्बावती के बाद दिन छोटा और रात बड़ा होने लगता है, क्योंकि सूर्य दक्षिणायन हो चुका है। आप इसे ऐसे भी समसिए कि मकरसंक्रांति के बाद दिन किस तरह बड़ा और रात छोटी होने लगती है।

अम्बावती के दौरान कोई पूजा-पाठ नहीं होता है न ही कोई अनुष्ठान होता है। इस दौरान सिंदुर का भी किसी तरह प्रयोग नहीं होता है। अम्बावती के पहले ही संताल जाहेर थान, मांझी थान में पूजा करते हैं।

अम्बावती का पालन सिर्फ संताल ही नहीं दूसरे समुदाय के लोग भी करते हैं। इसका पालन हिंदू भी करते हैं। अम्बावती एक वैज्ञानिक, तार्किक और प्रकृति चक्र वाली परंपरा है।

किसानों में इस समय अवधि के बाद आषाढी पूजा करने और कृषि कार्य में लगने की पंरपरा है।

(सरी धर्म गुरु बाबा सोमाई किस्कू ने जैसा क्लाइमेट ईस्ट को बताया। सोमाई किस्कू पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में रहते हैं और सरना धर्म गुरु हैं। उन्होंने संतालों का धर्मग्रंथ लिखा है। सोमाई किस्कू साहित्य के लिए टैगोर अवार्ड से सम्मानित लेखक हैं। )

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