प्रकृति की अद्भुत रचना है ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक, इससे जुड़ी गलतफहमियों के न हों शिकार

रांची में हाल में एक सांप को रेस्क्यू किया गया जिसे तक्षक नाग बता कर मीडिया में खबरें छापी गई, ऐसे में आमलोगों के लिए यह जरूरी है कि वे इस प्रजाति से जुड़ी सच्चाइयों को जानें

विवेकानंद कुमार
सीनियर जू बॉयोलॉजिस्ट

हाल ही में रांची के नामकुम से एक सांप को बचाया गया, जिसे स्थानीय रूप से तक्षक नाग के रूप में पहचाना गया, लेकिन वास्तव में वह ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक Ornate Flying Snake (Chrysopelea ornata) है। उसे एक स्नैक कैचर ने पकड़ा था, जिसके बाद मीडिया में तरह-तरह की खबरें आईं।कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इस सांप को दुर्लभ और खतरनाक बताया गया, लेकिन सांप से जुड़े विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं। ऐसे में सरीसृप विशेषज्ञों ने इस प्रजाति से जुड़ी गलतफहमियों को स्पष्ट किया है।

ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक को समझें


ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक, जिसे ग्लाइडिंग स्नेक भी कहा जाता है, एक आर्बोरियल प्रजाति है जो मुख्य रूप से घने जंगलों में पाई जाती है। इसका अनोखा गुण एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक उड़ने का है, जिससे इसे उड़ने वाला या अलौकिक मानने की गलतफहमी होती है। दरअसल, यह प्रजाति अपने शरीर को चपटा करके और हवा में लहराकर लंबी दूरी तक उड़ान भरता है।

यह अनुकूलन फ्लाइंग स्क्विरल के समान है, जो अपने शरीर पर मौजूद त्वचा के फ्लैप (पेटाजिया) का उपयोग करके पेड़ों के बीच आसानी से उड़ता है। यह न केवल शिकारियों से बचने में मदद करता है, बल्कि भोजन खोजने में भी सहायक है। दोनों प्रजातियां जंगल की ऊपरी परत में जीवन के लिए प्रकृति की असाधारण अनुकूलता को दर्शाती हैं।

हालांकि, मानव निवास के पास इस सांप को दुर्लभ ही देखा जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह प्रजाति दुर्लभ है। यह एक छिपकर रहने वाली प्रजाति है, जो इंसानों से बचना पसंद करती है और जंगलों में रहना पसंद करती है। झारखंड में ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक को पहले भी सारंडा और खूंटी जैसे इलाकों में वन अधिकारियों और सांप बचावकर्ताओं द्वारा बचाया जा चुका है।

मिथक बनाम वास्तविकता

तक्षक नाग नाम सांप पकड़ने वालों द्वारा फैलाए गए मिथकों से आया है, जिन्होंने इस प्रजाति को लोककथाओं से जोड़ दिया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक नाग (कोबरा या किंग कोबरा) नहीं है और इसमें नागों की तरह फन नहीं होता।

यह माइल्डली वेनोमस यानी हल्का विषैला होता है, लेकिन इंसानों के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है। इसका विष मुख्य रूप से छोटे शिकार जैसे छिपकली और मेंढकों को बेहोश करने के लिए होता है।

महत्वपूर्ण बात यह कि इसका हिंदी नाम अभी तक निश्चित नहीं किया गया है, इसलिए फिलहाल इसे उड़ने वाला सांप कहा जा सकता है।

गलतफहमी क्यों?

झारखंड में सांपों की विविधता और उनकी संख्या पर कोई विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है, जिससे किसी भी प्रजाति को दुर्लभ कहना जल्दबाजी होगी। इनके मानव बस्तियों के पास कभी-कभार देखे जाने का कारण पर्यावरणीय कारक हो सकते हैं। विशेषज्ञों का यह भी सुझाव है कि नामकुम में पाया गया यह सांप संभवतः किसी सांप पकड़ने वाले या समाजसेवी द्वारा छोड़ा गया हो। हालांकि, अधिक संभावना यह है कि यह एक प्राकृतिक जंगल का सांप है, क्योंकि यह प्रजाति झारखंड में पहले भी दर्ज की गई है और नामकुम क्षेत्र का जंगलों से अच्छा संपर्क है।

संरक्षण और अनुसंधान की आवश्यकता


वन्यजीव विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि सांपों और उनके पारिस्थितिकीय महत्व के बारे में मिथकों को दूर करने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाए जाए।

साथ ही झारखंड में सांपों की विविधता और उनके व्यवहार पर विस्तृत शोध किया जाए।

ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक प्रकृति की अद्भुत रचना का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसे वैज्ञानिक रूप से समझने से इसके आवास की रक्षा और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी।

(विवेकानंद कुमार रांची के ओरमांझी स्थित भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में सीनियर जू बॉयोलॉजिस्ट हैं।)

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