जब हम छोटे थे तो बहुत तेज बरखा होती थी, तब खेती भी अच्छी थी

लोहरदगा जिले के बगरू पहाड़ के आसपास के ग्रामीण अच्छी बारिश नहीं होने से चिंतित है, जबकि इस बॉक्साइट खनन क्षेत्र में जंगली पशुओं के ग्रामीण क्षेत्र में प्रवेश करने व फसलों को नुकसान पहुंचाने के मामले बढ रहे हैं।

लोहरदगा जिले से राहुल सिंह की रिपोर्ट

झारखंड की राजधानी रांची से सटे लोहरदगा जिले के 64 वर्षीय किसान चरवा उरांव बारिश नहीं होने को लेकर परेशान हैं। सितंबर के पहले सप्ताह इस संवाददाता से बातचीत करते हुए कहते हैं, “पिछले दो सप्ताह से हल्का-हल्का ही पानी (बारिश) पड़ रहा है, धान के ऊपरी खेत में पानी खत्म हो गया है, सिर्फ गड्ढा वाले खेत में ही पानी है, उंचा वाला खेत में दिक्कत ज्यादा है”। वे कहते हैं, “रोपा के समय पानी (बारिश) ठीक था, पिछले साल तो पानी एकदम ही नहीं पड़ा बारिश नहीं हुई। वे मानसून के महीनों में झारखंड में बारिश की बढती अनिश्चितता व कम बारिश को लेकर भी चिंता जताते हैं, कहते हैं – तीन साल से झारखंड में ऐसा ही हो रहा है।

चरवा उरांव के पास अपनी खेतिहर जमीन नहीं है। वे एक एकड़ जमीन में अध बंटाई पर खेती करते हैं और खेती से बचे दिनों में मजदूरी करते हैं।

इस संवाददाता के एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं, “जब हम छोटे थे तो उस समय बहुत तेज बरखा होती थी और खेती भी अच्छी होती थी, अब खेतीबारी अच्छी नहीं होती है तो लोग कमाने बाहर चले जाते हैं”। वे कहते हैं कि 12 दिन से ठीक से बारिश नहीं हुई है।


चरवा उरांव के बगल में बैठे किसान धुराई उरांव (60) कहते हैं, “मेरे पास डेढ एकड़ खेत है, मेरे नीचे वाले खेत में पानी है, ऊपर वाले में पानी नहीं है। वे कहते हैं, “बारिश के दिन में धान और ठंड के दिन में आलू की खेती करते हैं और कोई रबी फसल नहीं करते हैं”। वे बातचीत के क्रम में किसानों के उपज के बढते संकट का उल्लेख करते हुए खेतिहार समाज के भी खाद्य सुरक्षा योेजना पर बढती निर्भरता को रेखांकित करते हैं। धुराई कहते हैं, “तीन किलो सरकारी गेहूं और 12 किलो चावल मिलता है, उसी से गुजारा चलता है”।

रवा उरांव भूमिहीन किसान हैं और अंधबंटाई पर खेती करते हैं, धुराई उरांव के पास डेढ एकड़ खेतिहर जमीन है। वे कहते हैं ऊंचाई वाले खेत सूख गये हैं। फोटो – राहुल सिंह।

चरवा उरांव व धुराई उरांव लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड क्षेत्र के बगरू गांव के निवासी हैं, जो बगरू पहाड़ की तराई में बसा है। बगरू पहाड़ झारखंड में बॉक्साइट की एक प्रमुख खदान है। धुराई स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलने की संभावनाओं पर पूछे जाने पर कहते हैं, “बॉक्साइट दो साल से बंद है तो काम भी नहीं है,यहां सिंचाई का भी कोई साधन नहीं है”।

भारतीय मौसम विभाग के आंकड़े के अनुसार, लोहरदगा में एक जून 2024 से 8 जून 2024 तक औसत से 42 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इस अवधि में सामान्यतः इस जिले में 840.9 मिमी बारिश हुई है, जबकि इस साल मात्र 484 मिमी बारिश हुई है। झारखंड के 24 में 10 जिले ऐसे हैं, जहां इस बार 20 से 55 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है। सबसे कम बारिश वाला जिला इस साल पाकुड़ रहा है, जहां 55 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है। जबकि 25 प्रतिशत से अधिक वर्षापात की कमी वाले तीन जिले हैं – देवघर 36, चतरा 27, पश्चिम सिंहभूम 26। बारिश की यह अनिश्चितता किसानों के लिए परेशानी का बड़ा सबब है। लोहदरगा जिले में इस साल के मानसून के अबतक के 14 सप्ताह में सात सप्ताह काफी कम बारिश हुई है। जबकि झारखंड में 14 सप्ताह में छह सप्ताह कम बारिश हुई है जो भारतीय मौसम विभाग के डेटा में लाल निशान पर दिखता है।

इस इलाके के किसान मौसमी मार के साथ जंगली पशुओं द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने के संकट से भी जूझ रहे हैं। बगरू पहाड़ के आसपास के गांवों में जंगली सुअरों का आतंक है।

जंगली सुअरों का भी इलाके में आतंक

बगरू गांव की 41 वर्षीया महिला किसान राजकुमारी उराईन कहती हैं, “जंगली सुअरों के आतंक से हम परेशान हो गये हैं, अंधेरा होने के बाद वे पहाड़ पर से नीचे उतरते हैं और हमारी फसलों को बर्बाद कर देते हैं”। राजकुमारी उराईन इस संवाददाता को अपने खेत दिखाते हुए कहती हैं, “यह देखिये कैसे मक्का की पूरी फसल सुअरों ने बर्बाद कर दी है”। वे कहती हैं कि अभी मक्के में दाना आया है तो उसको नुकसान पहुंचा रहे हैं, जब धान में दाना आएगा तो उसको नुकसान करेंगे।

किसान सुभाष उरांव मक्के की फसल को जंगली सुअरों द्वारा पहुंचाये गये नुकसान को दिखाते हुए। फोटो – राहुल सिंह।

गांव के 35 वर्षीय किसान सुभाष उरांव कहते हैं, “सूअर हमारी फसलों को नष्ट कर देते हैं, हम उन्हें कुछ कर भी नहीं सकते हैं, अगर उन्हें कोई नुकसान होगा तो वन विभाग वाला हम पर एफआइआर दर्ज कर लेगा”। सुभाष बातचीत के क्रम में बताते हैं कि ऐसे में हमारे पास एक ही विकल्प है कि हम खेत में सुअरों से फसलों की रात में रखवाली करें। फसलों की रखवाली के लिए लोगों ने खेतों में कुछ जगहों पर मचान भी बनाया है, लेकिन सूअर झुंड में आते हैं और रखवाली के लिए मचान भी दूर-दूर पर और कम संख्या में हैं, ऐसे में वे फसलों को बचाना मुश्किल होता है।

महिला किसान राजकुमारी उराईन खेत में मूंगफली की फसलों को सुअरों के द्वारा पहुंचाये गये नुकसान को दिखाते हुए।

ग्रामीण सुअरों पर हमला करने से इसलिए डरते हैं कि अगर उन्हें कोई क्षति पहुंची तो उन पर केस न हो जाये। खेतों में रोशनी के लिए गांव के मकानों से सटे खेतों के पास हैलोजन लाइट लगाई गई है, लेकिन सभी जगहों पर ऐसा करना संभव नहीं है।

बगरू के बगल के गांव बांडी के 35 वर्षीय किसान सुभाष उरांव कहते हैं, अगर रस्सी व तार से भी सूअर को कोई नुकसान हो जाएगा तो हम पर केस दर्ज हो जाएगा, यहां के किसान इस बात से डरते हैं, जबकि वे हमारी साल भर की फसल को नश्ट कर देते हैं।

लोहरदगा की स्थिति – लोहरदगा जिला रांची से पश्चिम की ओर स्थित है और 2011 की जनगणना के अनुसार आबादी (4.61 लाख) की दृष्टि से राज्य का सबसे छोटा जिला है। वहीं, लोहरदगा (1494 वर्ग किमी) क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से यह रामगढ (1212 वर्ग किमी) और कोडरमा (1312 वर्ग किमी) के बाद राज्य का तीसरा सबसे छोटा जिला है।

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