दुमका: आदिवासी व परंपरागत शासन व्यवस्था के लिए काम करने वाले संगठन ग्राम प्रधान मांझी संगठन ने 30 जून को हूल दिवस के मौके पर झारखंड सरकार से स्थानीय नीति लागू करने सहित पूरे संताल परगना क्षेत्र में सिंचाई के लिए गंगा नदी का पानी उपलब्ध करवाने की मांग की है।
ग्राम प्रधान मांझी संगठन ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लिखे पत्र में कहा है कि संताल परगना भौगोलिक रूप से पठारी व वन क्षेत्र वाला इलाका है और यह काफी पिछड़ा क्षेत्र है। इस वजह से यहां से पलायन होता है। स्थानीय स्तर पर लघु व वृहत खनिज होने के बावजूद युवाओं को रोजगार नहीं मिलता है। पत्र में ब्रिटिश शासन से लेकर आजादी के बाद संताल परगना क्षेत्र के लिए बने विभिन्न कानूनों का हवाला देते हुए लिखा गया है कि लघु खनिज व वनोत्पाद से समुदाय को वंचित रखना सरकारी उदासीनता का प्रमाण है।

हूल दिवस पर संगठन की बैठक में संताल परगना के विभिन्न क्षेत्र से जुटे लोग।
इसलिए संताल परगना के हित में पेसा कानून व 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति को अविलंब लागू किया जाए। साथ ही संताल परगना क्षेत्र में गंगा का पानी सिंचाई के लिए उपलब्ध करवाया जाए। संताल परगना काश्तकारी अधिनियम के प्रावधान के तहत मालगजुरी की वसूली पुरानी पद्धति से ऑफ लाइन ग्राम प्रधान के माध्यम से करायी जाए।
इसके साथ ही संताल परगना क्षेत्र के सभी ग्राम प्रधान की मासिक भुगतान 10 हजार व लेखाहोड़ का 5000 तय किया जाए। झारखंड सरकार के वर्तमान नियोजन नीति 60ः40 को तुरंत रद्द किया जाए।
संगठन ने मांग की है कि आदिवासी व पंरपरागत शासन प्रणाली के सभी सदस्यों ग्राम प्रधान,़ लेखाहोड़, जोगमांझी, पराणिक, नायकी, कुडुम नायकी, व गुड़ितों का सरकार 10-10 लाख का बीमा करवाये। प्रधानी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए प्रमंडल स्तर पर प्रधान परिषद का गठन किया जाए। ग्राम सभा को विकास के लिए समुचित राशि देने के साथ उन्हें लघु खनिज व वनोत्पाद का अधिकार दिया जाए। इसके साथ ही ओडिशा प्रांत के सालखान मुर्मू के प्रवेश पर रोक लगायी जाए।

मुख्यमंत्री को लिखे गए इस पत्र में संगठन के अध्यक्ष भीम प्रसाद मंडल सहित अन्य के हस्ताक्षर हैं।