बड़वानी (मध्यप्रदेश) : नर्मदा बचाओ आंदोलन ने नर्मदा घाटी के विस्थापितों के मुद्दे पर 21 अप्रैल 2025 को एक विस्तृत बयान जारी कर सरकार से सवाल पूछा है। एनबीए के भगवान सेप्टा, श्यामा मछुआरा, कमला यादव, देवीसिंह तोमर, गजानंद यादव व मेधा पाटकर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में घाटी के 32 हजार तक भूखंड आवंटित किए गए, जिनकी रजिस्ट्री नहीं हुई। कईयों को केवल कागज तो कईयों को भूखंड मिले ही नहीं हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सवाल पूछा है कि नर्मदा घाटी के विस्थापितों को आधे रास्ते में छोड़ने का क्या कारण है। सभी तहसीलों में पुनर्वास अधिकारियों के पद वर्षाें से रिक्त क्यों हैं? गुजरात के लिए कानूनी बाध्यता होते हुए भी गुजरात में उर्वर पुनर्वास भूमि और मध्यप्रदेश के डूबग्रसत वन जमीन और शासकीय जमीन की भरपाई के करोड़ों रुपये के खर्च की राशि देने से क्यों इनकार किया है।
अगर राज्य शासन को भी राशि का आवंटन जरूरी था तो आदिवासियों के पेस कानून के तहत जारी विरोध के बावजूद नर्मदा पर नये-नये बांध के लिए हजारों करोड़ रुपये और सरदार सरोवर के उर्वरित कार्य के िलए मात्र 150 करोड़ ही क्यों आवंटित किए गए। आंदोलन ने पूछा है कि इन तमाम सवालों के समाधान के लिए प्रशासनिक अधिकारियों व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के साथ संवाद होगा या फिर सत्याग्रह पर उतरना होगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने पूछा है कि नर्मदा नदी के निर्मल रहने न देने के लिए कौन दोषी है। नदी एक जीवित इकाई है और पेयजल सहित जन-जन के जीवन का आधार है। आज तक जबलपुर से बड़वानी तक गंदा पानी नदी में जा रहा है और एसटीपी नहीं है। ऐसे में नर्मदा में क्रूज चलाने का फैसला लिया गया है और इस फैसले को लेकर एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग को दिये आदेश का पालन होगा या उसका उल्लंघन।
आंदोलन ने यह भी पूछा है कि नर्मदा के पानी से कच्छा व सौराष्ट्र तक की जरूरत पूरा करने के लिए सरदार सरोवर बना, जिस पर गुजरात सरकार की घोषणा के अनुसार 75 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए, हालांकि हमारी जानकारी के अनुसार 90 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। फिर भी कच्छ और सौराष्ट्र के किसान पानी से वंचित हैं। गांव-गांव में पीने का पानी खरीदना मुश्किल हो रहा है। महिलाएं कई किलोमीटर तक चल कर पानी लाने को मजबूर हैं। आंदोलन ने यह भी पूछा है कि क्या 40वें साल में भी संघर्ष जारी रखना होगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा है कि नर्मदा घाटी में चल रहे आंदोलन के जरिए हमने पिछले 40 सालों में बहुत कुछ पाया, लेकिन बहुत कुछ खोया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा है कि 2023 के भयावह डूब में इनसान, मवेशियों की मृत्यु हुई, लोगों के घर ध्वस्त हो गए। बैकवाटर लेवल बदलने से 2023 की वजह से बाढ़ आई।
इस स्थिति में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के भी नर्मदा घाटी के लोग पानी के लिए तरसने की हकीकत, कई किलोमीटर तक चलकर पानी लाने के लिए मजबूर महिलाओं के फोटोज, वीडियो के साथ धक्कादायक खबर बन गयी है? क्या नर्मदा माता और जनता के अधिकार के लिए 40 वे साल भी संघर्ष जारी रखना ही पड़ेगा?