भारत के नेट ज़ीरो लक्ष्य पर कोयला आधारित स्टील उत्पादन का खतरा

ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीओएम) की हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि भारत का कोयला आधारित स्टील उत्पादन देश के 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को गंभीर खतरे में डाल सकता है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में स्टील उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर कोयले का उपयोग न केवल भारी ग्रीनहाउस गैस एमिशन्स बढ़ा रहा है, बल्कि भविष्य में 187 अरब डॉलर तक की फंसी हुई संपत्तियों या स्ट्रेंडेड एसेट्स, खतरा भी पैदा कर रहा है।

भारत का स्टील उद्योग और कोयले पर निर्भरता

भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक है। वर्तमान में यहां 258 मिलियन टन प्रति वर्ष स्टील उत्पादन क्षमता विकासाधीन है, जिसमें 87% से अधिक उत्पादन कोयला आधारित तकनीकों से किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्सर्जन में वृद्धि स्टील उद्योग से 2024 में 240 मिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड एमिशन हो रहा है, जो देश के कुल एमिशन का 12 प्रतिशत है। यह आंकड़ा 2030 तक दोगुना हो सकता है।

तकनीकी असमानता : 69 प्रतिशत निर्माणाधीन क्षमता प्रदूषणकारी बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस (बीओएफ) पर आधारित है, जबकि कम एमिशन वाली इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (इएएफ) मात्र 133 प्रतिशत है।

डीआरआई उत्पादन का कोयला उपयोग: डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआइ) उत्पादन में लगभग 54 प्रतिशत क्षमता कोयले से चल रही है, जबकि ग्रीन हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ विकल्प अभी भी सीमित हैं।

“अब निर्माण करो, बाद में ग्रीन बनो” नीति का प्रभाव

भारत की स्टील नीति में वर्तमान में “अब निर्माण करो, बाद में ग्रीन बनो” का दृष्टिकोण अपनाया गया है। इस पर जीइएम की शोधकर्ता ख़दीजा हिना का कहना है, “भारत का यह दृष्टिकोण लंबे समय में घातक सिद्ध होगा। स्टील उत्पादन में कोयले पर निर्भरता को जल्द से जल्द खत्म करना और ग्रीन स्टील का इकोसिस्टम तैयार करना अत्यंत आवश्यक है।“

एमिशन बढ़ाने वाले मुख्य कारक

  1. युवा कोयला आधारित संयंत्रः पिछले दो दशकों में निर्मित 75 एमटीपीए क्षमता वाले संयंत्र लंबे समय तक चलेंगे, जिससे कार्बन लॉक-इन का खतरा बढ़ गया है।
  2. घटिया गुणवत्ता वाली सामग्रीः भारत के घरेलू लौह अयस्क और कोयले की निम्न गुणवत्ता अधिक एमिशन करती है।
  3. सीमित ग्रीन विकल्पः ग्रीन हाइड्रोजन जैसी तकनीकें अभी महंगी और सीमित हैं, जिससे ग्रीन स्टील में बदलाव धीमा हो रहा है।

ग्रीन स्टील की दिशा में संभावनाएं और चुनौतियां

भारत ने सितंबर 2024 में स्टील उद्योग के लिए ग्रीन रोडमैप प्रस्तुत किया, जिसमें 2030 तक 45ः एमिशन में कटौती का लक्ष्य रखा गया। हालांकि, यह रोडमैप कोयला आधारित तकनीकों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की रणनीति में असफल है।

सुधार के लिए आवश्यक कदम

  1. ग्रीन हाइड्रोजन पर निवेशः भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत 2030 तक 5 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में, जेएसडब्ल्यू और जिंदल स्टील जैसे कुछ बड़े निर्माता ग्रीन हाइड्रोजन-आधारित उत्पादन की ओर बढ़ रहे हैं।
  2. स्टील स्क्रैप का उपयोगः रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्टील उत्पादन में स्क्रैप का योगदान केवल 21 प्रतिशत है। 2030 तक 70-80 मिलियन टन स्क्रैप की आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्क्रैप पॉलिसी को सख्ती से लागू करना होगा।
  3. रिन्यूबल एनर्जीः स्टील उद्योग में 2030 तक 43 प्रशित रिन्यूएबल एनर्जी का लक्ष्य रखा गया है, जिससे उत्पादन की एमिशन तीव्रता में आठ प्रतिशत की कमी आएगी।

निष्कर्ष

भारत का स्टील उद्योग, जो वर्तमान में अत्यधिक प्रदूषणकारी है, ग्रीन स्टील में नेतृत्व करने की संभावना रखता है। ग्लोबल एनर्जी मीटर की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भारत को जल्द से जल्द कोयला आधारित उत्पादन को बंद कर ग्रीन तकनीकों में निवेश करना चाहिए।

ख़दीजा हिना का कहना है, “आज के निर्णय न केवल पर्यावरणीय स्थिरता, बल्कि भारत की आर्थिक प्रतिस्पर्धा को भी तय करेंगे।“ यदि समय पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भारत को भविष्य में बड़े पर्यावरणीय और आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ सकता है।

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